कुछ मेरे बारे में

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आईज़ोल, मिज़ोरम, भारत
अब अपने बारे में मैं क्या बताऊँ, मैं कोई भीड़ से अलग शख्सियत तो हूँ नहीं। मेरी पहचान उतनी ही है जितनी आप की होगी, या शायद उससे भी कम। और आज के जमाने में किसको फुरसत है भीड़ में खड़े आदमी को जानने की। तो भईया, अगर आप सच में मुझे जानना चाहते हैं तो बस आईने में खुद के अक्स में छिपे इंसान को पहचानने कि कोशिश कीजिए, शायद वो मेरे जैसा ही हो!!!

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गुरुवार, 1 अक्तूबर 2009

१ बार मुस्कुरा २

तूफान तेज़ी पर था। बडी हवेली की खिडकियां जोर-जोर से खड्खडा रही
थी। एक बूडा नौकर मेहमान को शयनकक्ष की तरफ ले जा रहा था। रहस्यमय और
भयानक वातावर्ण से डरे हुए मैहमान ने बूडे नौकर से पूछा, क्या इस कमरे
मे कोई अप्रत्याशित घटना घटी है?"

"चालीस साल से तो नही।" नौकर ने
जवाब दिया।

आशवस्त होते हुए मेहमान ने पूछा, " चालीस साल पहले क्या
हुआ था?" बूडे नौकर के आखों मे चमक पैदा हुई और वह फुसफुसाते हुए बोला,

"एक आदमी सारी रात इस कमरे मे ठहरा था और सुबह बिल्कुल ठीक ठाक उठा
था।"

5 टिप्‍पणियां:

  1. फिर आगे क्या हुआ ??????

    कृप्या वर्ड वेरीफिकेशन हटा दे, टिप्पणी करने में सुविधा होती है ।


    गुलमोहर का फूल

    जवाब देंहटाएं
  2. bahut barhia...aapka swagat hai... isi tarah likhte rahiye..

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