जिसको देखो आज वही कह रहा मैं हूँ अन्ना, मैं हूँ अन्ना
चाहे हो वो किसान, मजदूर या कोई सेठ हो धन्ना
अब लगता है सरकारी दफ्तर में सबका काम बनेगा
नहीं बना तो लगा लो टोपी, लिखा हो जिसपे "मैं हूँ अन्ना"
अब वो चाहे सांसद हो या हो विधायक,
हाथ जोड कर शीश नवा कर सुने का अर्जी
अब जनता है मालिक नेता अपने सेवक
बहुत हो चुका जालसाजी औ काम सब फर्जी
चल मित्र अब हम भी सिलवा लें एक टोपी
लिखवा लें उसपे मोटे शब्दों में "मैं भी अन्ना"
लेकिन मेरे यार न भूलो रखना होगा सम्मान इस टोपी का
यह ना सोचो यह टोपी बस तेरे ही सर पर फिट बैठेगा
दर्जनो सर ऐसे हैं जिन पर टोपी यह रक्खी है
जिनपे लिखा है भईया "मैं हूँ अन्ना" "मैं हूँ अन्ना"
अब कैसे होगी तुम्हारी ऊपर कि कमाई
गए थे मजा लगाने, अब तो तेरी ही शामत आई
मेरी तो यह राय है बंन्धू, अब ना करो आना कानी
ले लो शपथ, अब कमाओगे तो बस अपनी गाढी कमाई
जब तक हम सब अंदर से ना सुधरेंगे
तब तक कहना है बेकार कि "मैं हूँ अन्ना"
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