कुछ मेरे बारे में

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आईज़ोल, मिज़ोरम, भारत
अब अपने बारे में मैं क्या बताऊँ, मैं कोई भीड़ से अलग शख्सियत तो हूँ नहीं। मेरी पहचान उतनी ही है जितनी आप की होगी, या शायद उससे भी कम। और आज के जमाने में किसको फुरसत है भीड़ में खड़े आदमी को जानने की। तो भईया, अगर आप सच में मुझे जानना चाहते हैं तो बस आईने में खुद के अक्स में छिपे इंसान को पहचानने कि कोशिश कीजिए, शायद वो मेरे जैसा ही हो!!!

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रविवार, 11 नवंबर 2012

धनतेरस


धन-तेरस ! मेरी अल्प जानकारी में यह एक मात्र  दिन है जिसमें तेरह (१३) का अंक जुडा हुआ है फिर भी हर वर्ष इसे हर्ष-उल्लास से मनाया जाता है।  आज का दिन धनवन्तरी जयन्ती भी है । हम सब को यह दिन मुबारक हो, हम सबकी मंगल-कामनांएं पूरी हों ।

शुक्रवार, 14 सितंबर 2012

हिन्दी : मातृ भाषा से मात्र भाषा तक

आज़ादी के बाद भारत ने उन्नति के कई आयाम देखे हैं। हमनें आज़ादी के बाद बहुत कुछ पाया है, बहुत कुछ खोया भी है। आज के दिन अगर हम पीछे मुड के देखें तो पाएंगे कि उन्नति कि आपाधापी में कुछ अमुल्य वस्तु भी खोया है। यह फेहरिस्त बहुत लम्बी हो सकती है, लेकिन हिन्दी दिवस के सन्दर्भ में देखें तो मुझे लगता है कि हमने कहीं-न-कहीं अपनी मातृ भाषा के सम्मान को खोया है। दूसरी प्रांतीय अथवा विदेशी भाषा को सीखने-बोलनें-सम्मान देने  में कोई बुराई नहीं है, लेकिन अपनी मातृ भाषा से ज़्यादा सम्मान अन्य भाषा को देना कहां तक सही है? यह हमें कभी-न-कभी सोचना पडेगा। इस चिंतन के लिए आज से बेहतर दिन और अब से बेहतर समय कभी नहीं होगा।



ज़रा सोचिए...., एक समय था जब हमारे पूजनीय स्वतंत्रता सेनानीओं नें हिन्दी को मां का रूप मान कर इसे मातृ भाषा कहा था, और आज हम हिन्दी को मात्र भाषा से ज़्यादा तवज्जो नहीं देते हैं ।


आइए आज हम वायदा करते हैं कि जो काम हम हिन्दी में कर सकते हैं वह काम हम किसी और भाषा में नहीं करेंगें। या वायदा छोडिए, आज से हम यह कोशिश अवश्य करेंगे (क्यों कि वायदे अक्सर टूट जाते हैं और कोशिशे कामयाब हो जातीं हैं)।

आइए हम हिन्दी को मात्र भाषा से अलग मातृ भाषा का सम्मान दिलाने का प्रयास करते है। यह एक छोटा सा  
कदम एक दिन मील का पत्थर अवश्य बनेगा, इस उम्मीद के साथ  आप सब को हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं”!!

हिन्दी दिवस


हिन्दी दिवस प्रत्येक वर्ष १४ सितम्बर को मनाया जाता है। १४ सितंबर १९४९ को संविधान सभा ने एक मत से यह निर्णय लिया कि हिन्दी ही भारत की राजभाषा होगी । इसी महत्वपूर्ण निर्णय के महत्व को प्रतिपादित करने तथा हिन्दी को हर क्षेत्र में प्रसारित करने के लिये राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के अनुरोध पर सन् १९५३ से संपूर्ण भारत में १४ सितंबर को प्रतिवर्ष हिन्दी-दिवस के रूप में मनाया जाता है।
स्वतन्त्र भारत की राजभाषा के प्रश्न पर काफी विचार-विमर्श के बाद यह निर्णय लिया गया जो भारतीय संविधान के भाग १७ के अध्याय की धारा ३४३(१) में इस प्रकार वर्णित है:
संघ की राज भाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी । संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप अंतर्राष्ट्रीय रूप होगा ।                                                                                                 (विकिपीडिया से साभार

मंगलवार, 8 मई 2012

 (received through e-mail from my friend Jayesh Desai)

.... Are you as smart as a 6 year old ??
 
There are 4 questions. Don’t miss one.
 
 

1.  How do you put a giraffe into a refrigerator?

Stop and think about it and decide on your answer before you scroll  down.







 
 






 

 
 
The correct answer is: Open the refrigerator, put in the giraffe, and close the door. This question tests whether you tend to do simple things in an overly complicated way.

 


 
 
2.  How do you put an elephant into a refrigerator?   

 
 
 
 
 
 
 
 
 



 

 
 
 
 
Did you say, open the refrigerator, put in the elephant, and close the refrigerator?
 
Wrong Answer.
 
Correct Answer: Open the refrigerator, take out the giraffe, put in the elephant and close the door. This tests your ability to think through the repercussions of your previous actions..

 
 
 
 
 
 
  
 
 
 
 
 
3.  The Lion King is hosting an animal conference.  All the animals         
Attend ....  Except one.  Which animal does not attend?

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

 

 
 
 

 
 
 
Correct Answer: The Elephant. The elephant is in the refrigerator. You just put him in there.  This tests your memory ... Okay, even if you did not answer the first three questions correctly, you still have one more chance to show your true abilities.
 
 
 
 
 
 
 
4.  There is a river you must cross but it is used by crocodiles, and      
You do not have a boat. How do you manage it?

 
 
 
 
 

 

 
 
 

 
 
Correct Answer: You jump into the river and swim across. Have you not been listening? All the crocodiles are attending the Animal Meeting. This tests whether you learn quickly from your mistakes.


According to Anderson Consulting Worldwide, around 90% of the
 
Professionals they tested got all questions wrong, but many preschoolers got several correct answers.  Anderson Consulting says this conclusively proves the theory that most professionals do not have the brains of a four-year-old.  









मंगलवार, 24 अप्रैल 2012

धर्मनिर्पेक्षता और रंग-निर्पेक्षता


मुझे SECULAR शब्द एक शब्द कम राजनीति ज़्यादा लगता है । ऐसा मेरा मानना है कि हमारे देश ने कभी इस शब्द को अर्थ दिया था, लेकिन हमारे अपने नेताओं ने इस अर्थ का चीरहरण कर लिया। अब जब भी मैं यह शब्द SECULAR सुनता हूँ तो मुझे धर्मनिर्पेक्षता नहीं बल्कि इसकी आड में धर्मसापेक्षता से भरा कोई कुटील वक्तव्य नज़र आने लगता है । हम लोग जब मुस्लिम समाज के बारे में कुछ बोलते हैं तभी SECULAR शब्द का प्रयोग करते हैं । अबतो स्थिति यह है कि अब धर्मनिर्पेक्षता का रंग भी होने लगा है; कभी हरा तो कभी गेरुआ । धर्मनिर्पेक्षता के नाम पर हम अब रंग-निर्पेक्ष भी नहीं रहे।
      ज़रा याद करके देखिए आपने आखरी बार कब SECULAR शब्द का प्रयोग गैर मुसलिम के संदर्भ में सुना था । अगर हम सही मायने में SECULAR हैं तो हमे इस शब्द कि कोई ज़रूरत ही नहीं पडनी चाहिए । हमें किसे के धर्म के बारे में सोचना ही नहीं चाहिए।
      इस चर्चा को थोडा और आगे बढाते हैं। मैं आजतक यह नहीं समझ सका कि भारत में किसी भी नौकरी के लिए दिए जाने वाले आवेदन पत्र में आपका धर्म क्यों पोछा जाता है? इस प्रश्न का कोई मकसद नहीं होता ऐसा मेरा मानना है, और इसका कारण है, मैं सरकारी नौकरी में हूँ, और मुझे याद है आवेदन पत्र में मैंने इस प्रश्न का कोई जवाब नहीं लिखा था।
      आइए ज़रा अपने धर्मनिर्पेक्ष लोकतंत्र के एक मजबूत खम्बे के बारे में भी कुछ चर्चा कर लेते हैं । अभी उत्तरप्रदेश में चंद दिनों पहले ही आम चुनाव हुआ था । ज़रा याद किजीए, लगभग सभी पार्टीयों नें धर्म और जाती के आघार पर टिकटों का बटवारा किया था, और मौंके-बे-मौके इसे कबूल भी किया था, लेकिन चुनाव आयोग द्वारा कोई आपत्ति नहीं उठाई गई। क्यों? पता नहीं । और उससे भी बुरा तो यह हुआ कि धर्मनिर्पेक्ष लोकतंत्र के सबसे बडे ठेकेदार संचार माध्यम (माफ किजीए लेकिन इनके लिए यह शब्द उचित लगता है) ने भी यह मुद्दा नहीं उठाया । मुद्दा उठाना तो दूर, टी.वी. समाचार चैनल तो इसी पर चर्चा करते रहे कि किस पार्टी नें कितने पिछड़ो, कितने मुस्लिमो आदि को टिकट दिया है। जैसे यह कोई बहुत समझदारी का काम हो ।
      और-तो-और हमारे कानून व्यवस्था ने भी इन सबका संज्ञान नहीं लिया । अगर हम सही मायनों में धर्मनिर्पेक्ष लोकतंत्र बनना चाहते हैं तो हमें इन सब सोच से आगे बड़ना होगा । धर्मनिर्पेक्ष को तो अपनाना ही होगा लेकिन रंग-निर्पेक्षता के साथ ।

मंगलवार, 7 फ़रवरी 2012

(बेमेल) तुकबन्दी


मुस्कुराने कि कोई वजह हो ज़रूरी नहीं
लेकिन बेवजह मुस्कुराना भी तो उचित नहीं

खुश रहने कि वजहें कम नहीं
खुशियां ढूंढ लेंगीं तुम्हे, तुम उन्हे पुकारो तो सही

वो मंजिल मंजिल नहीं, जिन्हे पाना मुश्किल नहीं
राह लंबी है, डगर मुश्किल है, पर कोहरा कोई बहाना नहीं

चुभें न कांटे हाथों में तो गुलाब कि नर्मी का हो भान नहीं
कांटो पर भी खिलता है गुलाब, कालींन वालों को इसका ज्ञान नहीं

रौशनी सूरज कि है भरपूर तो क्या मकानों में अंधकार नहीं
घर के कोनें को जो रौशन करे ऐसा दिया भूल जाना नहीं

बेजुबां दिल कि आवाज़ को कभी करो अनसुना नहीं
कभी अंतरात्मा से भी वार्ता करो, इससे बढ के कोई आवाज़ नहीं

हो खुशनसीब कि हैं सभी चाहने वाले तेरे पास यहीं
जरा सोचो उनकी, जिनका कोई कभी रहा ही नहीं

कौन है इस जहाँ में जो कभी रहा तन्हा नहीं
चलो मिटाएं तन्हाई किसी की इससे बड़ा कोई जज्बा नहीं

गुरुवार, 26 जनवरी 2012

गणतंत्र दिवस




हम सबको अपने देश का गणतंत्र दिवस मुबारक हो। यह एक ऐसी भावना है जिसे बोलने से ज़्यादा महसूस किया जाना चाहिए। लेकिन अफसोस ! आज के तेज़ चाल जमाने में हमें सोचने कि फुरसत कम है, हम बस बोल के काम चला लेते हैं। अगर समस्या केवल फुरसत कि कमी की होती तो भी गनीमत थी, असली समस्या तो यह है कि हम अब इन मुद्दों में छिपी भावनाओं को महसूस करने से कतराने लगे हैं।
       हम सब हर वर्ष 15 अगस्त और 26 जनवरी को कितने खुश होते हैं, दोस्तों मित्रों से मिलते हैं, एक समारोह सा माहौल होता है, राष्ट्र गान, देश भक्ती के गानें, मुँह में देश के लिए कुछ भी करनें के वायदे, हाथों में कागज के तिरंगे झंडे और जाने क्या-क्या। जाने क्यों, मुझे कभी-कभी यह सब सतही सा लगता है, इसमें गहराई और भावनाओं कि कमी लगती है। मैं ऐसा कहने के लिए आप सब से और खुद से भी माफी चाहता हूँ, लेकिन जरा सोचिए, 16 अगस्त और 27 जनवरी को और इसके बाद क्या होता है। हम फिर लग जाते हैं उसी खोखली कवायद में जिसमें 14 अगस्त और 25 जनवरी तक लगे होते हैं। जरा सोचिए अगर इस दिन छुट्टी न होती तो क्या हम वह सब करते जो हम किया करते हैं? अगर हाँ, तो जरा सोचिए हमें कौन रोकता है साल के 365 दिन इसी भावनाओं के साथ रहने से? क्यों हम भ्रष्टाचार में लिप्त रहते हैं? क्यों हम एक दूसरे को नीचा दिखाने कि कवायद में लगे रहते हैं? जरा सोचिए, जो कागज के तिरंगे झंडे 15 अगस्त और 26 जनवरी को हम पूरी शान से अपनें सीने से लगाए होते हैं वही 16 अगस्त और 27 जनवरी को मात्र कागज़ के रंगीन टुकड़े क्यों हो जाते हैं? क्यों हम मिठाई से मुँह तो मीठा कर लेते हैं लेकिन दिल के कड़वाहट दूर नहीं कर पाते? जिनसे एक दिन हम गले मिलते हैं, अगले दिन उसी के पीठ में छुरा क्यों घोंपते हैं?
       क्या हम अपनी इन आदतों से कभी आज़ाद हो पाएंगे? क्या हम स्वतंत्र हो पाएंगें? क्या हम अपनें देश को कभी सही मायनों में गणतंत्र बना पाएंगें? मुझे पुरी उम्मीद है, हाँ” ! हाँ हम ऐसा ज़रूर कर पाएंगें !!!
       आइए, आज से हम कोशिश करतें हैं कि हमारे जीवन में 15 अगस्त और 26 जनवरी मात्र दो दिन नहीं होंगें, बल्की साल के सभी 365 दिन हमारे लिए 15 अगस्त और 26 जनवरी जैसे ही होंगें।