हिन्दी दिवस प्रत्येक वर्ष १४ सितम्बर को मनाया जाता है। १४ सितंबर १९४९ को संविधान सभा ने एक मत से यह निर्णय लिया कि हिन्दी ही भारत की राजभाषा होगी । इसी महत्वपूर्ण निर्णय के महत्व को प्रतिपादित करने तथा हिन्दी को हर क्षेत्र में प्रसारित करने के लिये राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के अनुरोध पर सन् १९५३ से संपूर्ण भारत में १४ सितंबर को प्रतिवर्ष हिन्दी-दिवस के रूप में मनाया जाता है।
स्वतन्त्र भारत की राजभाषा के प्रश्न पर काफी विचार-विमर्श के बाद यह निर्णय लिया गया जो भारतीय संविधान के भाग १७ के अध्याय की धारा ३४३(१) में इस प्रकार वर्णित है:
संघ की राज भाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी । संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप अंतर्राष्ट्रीय रूप होगा । (विकिपीडिया से साभार)
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हिन्दी : मातृ भाषा से मात्र भाषा तक
आज़ादी के बाद भारत ने उन्नति के कई आयाम देखे हैं। हमनें आज़ादी के बाद बहुत कुछ पाया है, बहुत कुछ खोया भी है। आज के दिन अगर हम पीछे मुड के देखें तो पाएंगे कि उन्नति कि आपाधापी में कुछ अमुल्य वस्तु भी खोया है। यह फेहरिस्त बहुत लम्बी हो सकती है, लेकिन “हिन्दी दिवस” के सन्दर्भ में देखें तो मुझे लगता है कि हमने कहीं-न-कहीं अपनी मातृ भाषा के सम्मान को खोया है। दूसरी प्रांतीय अथवा विदेशी भाषा को सीखने-बोलनें-सम्मान देने में कोई बुराई नहीं है, लेकिन अपनी मातृ भाषा से ज़्यादा सम्मान अन्य भाषा को देना कहां तक सही है? यह हमें कभी-न-कभी सोचना पडेगा। इस चिंतन के लिए आज से बेहतर दिन और अब से बेहतर समय कभी नहीं होगा।
ज़रा सोचिए...., एक समय था जब हमारे पूजनीय स्वतंत्रता सेनानीओं नें हिन्दी को मां का रूप मान कर इसे मातृ भाषा कहा था, और आज हम हिन्दी को मात्र भाषा से ज़्यादा तवज्जो नहीं देते हैं ।
आइए आज हम वायदा करते हैं कि जो काम हम हिन्दी में कर सकते हैं वह काम हम किसी और भाषा में नहीं करेंगें। या वायदा छोडिए, आज से हम यह कोशिश अवश्य करेंगे (क्यों कि वायदे अक्सर टूट जाते हैं और कोशिशे कामयाब हो जातीं हैं)।
आइए हम हिन्दी को मात्र भाषा से अलग मातृ भाषा का सम्मान दिलाने का प्रयास करते है। यह एक छोटा सा
कदम एक दिन मील का पत्थर अवश्य बनेगा, इस उम्मीद के साथ “आप सब को हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं”!!