कुछ मेरे बारे में

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आईज़ोल, मिज़ोरम, भारत
अब अपने बारे में मैं क्या बताऊँ, मैं कोई भीड़ से अलग शख्सियत तो हूँ नहीं। मेरी पहचान उतनी ही है जितनी आप की होगी, या शायद उससे भी कम। और आज के जमाने में किसको फुरसत है भीड़ में खड़े आदमी को जानने की। तो भईया, अगर आप सच में मुझे जानना चाहते हैं तो बस आईने में खुद के अक्स में छिपे इंसान को पहचानने कि कोशिश कीजिए, शायद वो मेरे जैसा ही हो!!!

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सोमवार, 8 अगस्त 2011

(बेमेल) तुकबन्दी - किस्त चार

पिछ्ले कुछ दिंनोँ मेँ फेसबुक पर मित्रोँ के साथ वार्तालाप मेँ कुछ तुकबन्दी का सहारा लिया । उन्ही मेँ से कुछ को यहाँ अपने ब्लाग पर भी प्रेशित कर रहा हूँ, उम्मीद है पसन्द आयेगी..... 

मेरे एक मित्र Atul Pandey ने लिखा: 
कल मिला वक्त तो जुल्फें तेरी सुलझा लूँगा 
आज उलझा हूँ ज़रा वक्त के सुलझाने में 
यूँ तो पल भर में सुलझ जाती हैं उलझी जुल्फें 
उम्र कट जाती है पर वक्त के सुलझाने में



इस पर मैने लिखा था :
कल मिला वक्त तो आप जुल्फेँ सुलझाएँगे ?
और नही मिला वक्त तो हाथ मलते रह जाएँगे..
ज़िन्दगी का क्या है, सुलझाओ ना सुलझाओ बीत ही जाती है
लेकिन जुल्फेँ ना सुलझाया तो ज़िन्दगी भर सर खुजाएँगे

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