एक वक्त कि बात है, सुना है कि कहीं पर एक जुडवा मिनांरे थी (अब यह मत पुछीएगा कि जुडवा बच्चे तो होते है, जुडवा मिनारें क्या होती है?)। कहानी पर वापस आएं! तो वह जुडवा मिनारें मात्र मिनारें नहीं थीं, व्यवसाय का केन्द्र थीं, और उससे भी ज्यादा मूछें थीं उस प्रांत की (आप प्रश्न बहुत करते हैं – अब मैं क्या जानू कि किसी की मूछें जुडवा कैसे हो सकतीं हैं? अब थीं तो थीं मैं क्या करूं?)। अन्य प्रांतों के वाशिन्दे उन मिनारों को देखने के लिए आते थे। ऐसा कहा जाता है कि उन मिनारों को देखने में लोगों कि टोपियां गिर जाती थी। (कोई जादू से नहीं ऊंचाई कि वजह से, अब यह न पूछीएगा कि लोग टोपी लगा के मिनार क्यों देखते थे?)।
अच्छा, तो उन मूछों पर कुछ लोगों कि नजर लगी हुई थी। अब आप कुछ पूछें उससे पहले ही मैं बता दूं मूछों से मेरा मतलब मिनारों से है। इन नजर लगाने वालों कि एक खास बात होती है, यह अपनी मूछों से संतुष्ट नहीं होते, दूसरो की मूछ मूडने कि कवायद में ही लगे रहते हैं। वैसे इन मिनारों पर जिसकि नजर लगी थी उनका सरगना एक दाडी वाला था। कद-काठी ऐसी जबर्दस्त थी कि वह अपनी दाडी का वजन उठाने में ही थोडा सा झुक सा गया था। एक दिन दाडी वाले ने चुपके से कुछ ऐसा चाल चला कि उन मिनारों के चोटी पर आग लग गई। दाडी वाले ने मिनारों कि चोटी में आग इस लिए लगाई थी क्योकि उसे मालूम था कि मूछ वाले ने मिनारों के पैरों के पास सुरक्षा का विशेष प्रबन्ध किए था। मूछ वाले कि मूछ पर हमले ने मूछ वाले हो हिला के रख दिया। उसने कसम खाई कि एक दिन वो दाडी वाले कि दाडी को जरूर काटेगा।
इस घटना के बाद दाडी वाला अपनी दाडी के साथ फरार हो गया। मूछ वाला उसके पीछे – पीछे पूरे विश्व भर में उसे तलाशने लगा। इस प्रकिया में मूछ वाले ने कई देशों से युद्ध मोल ले लिया । (आप और आप के प्रश्न – अरे अब मोल लिया तो फायदा या नुक्सान का आंकलन वक्त के साथ हो ही जाएगा, अब मैं खाता-बही ले कर थोडे ही न बैठा हूं।) हां तो इस प्रक्रिया में मूछ वाले ने कुछ दोस्त भी बनाए। अगर मूछ वाला साथ में सूदखोर भी हो तब वह दोस्ती भी अपना फायदा देख कर ही करेगा, इसने भी किया। इस नए दोस्त का उसने कई प्रकार से प्रयोग भी किया, बदले में कुछ धन भी दिया। (आप भी ! – धन दिया कहना हि काफी नही है, कि अब यह भी कहूं कि मूछ वाले ने अपने नए दोस्त के प्रांत का मनमाना पयोग भी किया? अब यह तो उन दोस्तों के बीच की बात है, इस दोस्ती का आधार ही अपना-अपना उल्लू सीधा करना था। दोनों ने किया।)
इस नए दोस्त के कुछ पुराने मित्र और शत्रू भी थे, एक मित्र तो ऐसा था जो कि मूछ वाले का प्रतिद्वन्दी था और एक अन्य मित्र मंडली का सीधा संबंध दाडी वाले से था। लेकिन वो दाडी वाला तो गायब था, कोई कहता था कि वह मर चुका है जबकी कुछ अन्य का कहना था कि वो मूछ वाले पर हमले कि तैयारी कर रहा है। दाडी वाला तो खैर परिदृश्य से परे था, लेकिन एक सूद खोर मूछों वाला ऐसे चिन्दी चोर से दोस्ती क्यों करेगा? यह तो सबको मालूम है कि कुछ लाभ दिखा होगा, लेकिन ऐसा दोस्त जो प्रतिद्वन्दी का दोस्त हो और साथ ही दाडी वाले जैसों का भी दोस्त हो ! यह दोस्ती शुरू से ही बेमेल थी । पर हमें क्या? खैर, यहां अचानक कहानी में एक मोड आता है (बाकी राष्ट्रों के लिए यह एक अंजाना मोड होगा, हमारे लिए इसमें कोई नई बात नहीं थी, हां यह मानना पडेगा कि यह मोड ऐसे आएगा यह नहीं मालूम था) खैर हम मोड कि बात कर रहे थे, एक दिन, मेरा मतलब रात, अचानक मूछ वाले ने अपने बेमेल मित्र के घर के आंगन में हमला कर के एक संदिग्ध व्यक्ति को, जो लूडो खेल रहा था, दूसरी दुनियां में भेज दिया। और तब घर के मालिक को तथा पूरे विश्व को बताया कि दाडी वाले को जो कि दोस्त (पता नहीं किसका) के घर 5-6 साल से छुप के रह रहा था, मार दिया गया है। हहम्म्म, अब समझ में आया कि इतना खर्च कर के वो बेमेल दोस्ती क्यों निभा रहा था?
अब? आगे क्या? दोस्ती का मकसद तो हल हो गया, दाडी वाले को मार के मूछों वाला अपनी मूछों पर ताव देने जुडवा मिनारों के पास भी गया। अब तो लादेन बाबू लद गए । अब? अब इस दोस्ती का क्या होगा?
अब सभी लोग इससे खुश हैं कि दाडी वाले का दहन तो हो गया। अब? अब क्या? रावण के साथ कुम्भकरण और मेघनाथ का भी दहन होना चाहिए? बात तो सही है, वो भी तो उसी घर के दुसरे कोने में पडे हुए हैं। जो जुर्म दाडी वाले का है वैसा ही जुर्म तो इनका भी है।
(मित्रों यह कहानी अधूरी लगती है, देखें कब पूरी होती है)