आवारा पूँजी? आइए किसी भी दिशा में आगे बढने के पहले इस शब्दपुंज “आवारा पूँजी” के आशय पर एक नज़र डाल लेते हैं। अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में एक बड़ी हिस्सेदारी ऐसी पूँजी की है जिसे जिस तरफ भी लाभ नज़र आता है उधर ही दौड़ पड़ती है। यह लाभ पूँजीगत है या आयगत, दीर्घकालीन है अथवा लघुकालीन, यहाँ तक की लाभ नैतिक है या अनैतिक इनके द्वारा ऐसी बातों को पूरी तरफ से दरकिनार कर दिया जाता है। ऐसा पूँजी निवेश स्वभाव से अत्यधिक चंचल होता है जिसकि वजह से इस पर ऐतबार नहीं किया जा सकता। अन्य शब्दों में ऐसी पूँजी को अच्छे वक्त का साथी कहा जा सकता है, जिस पल अर्थव्यवस्था में थोड़ी भी परेशानी आती है, यह व्यवस्था को छोड़ कर अन्यत्र पलायन कर जाती है। अपनी इन्ही चारित्रिक ख़ामीयों के वजह से इन्हे आवारा पूँजी का नाम दिया जा सकता है।
अर्थव्यवस्था में विदेशी पूँजी निवेश को आमंत्रित करने का मतलब है ऐसी आवारा पूँजी को घरेलु बाज़ार में प्रवेश का प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष आमंत्रण देना। एक तरफ तो ऐसी पूँजी लम्बी सांसे ले रही अर्थव्यवस्था को जीवन रक्त प्रदान करती है, जो कि एक उभरते अर्थव्यव्स्था को व्यवस्थित होने के लिए अतिरिक्त तरलता प्रदान करती है, जबकी दूसरी तरफ जब इस अर्थव्यवस्था को आड़े वक्त में तरलता की अनीवार्य आवश्यकता आती है यह पूँजी देश से पलायन प्रारम्भ कर समस्या को और जटिल बना देती है। ऐसे भी उदाहरण हैं जब कुछ अर्थव्यवस्थाएं इस आवारा पूँजी के पलायन के कुजंजाल में फंस कर अस्थिर हो गईं हैं।
आवारा पूँजी के अनेक रूप हैं, लेकिन इन सब में सबसे बदनाम हैं हेज़ फंड़ तथा पार्टिसिपेटरी नोट (पी-नोट) के माध्यम से आने वाला निवेश। पार्टिसिपेटरी नोट्स वो दस्तावेज़ होते हैं जिनके माध्यम से कुछ व्यक्तियों या संस्थाओं को भारतीय शेयर बाज़ार में सहभागिता करने का मौक़ा मिल जाता है। आमतौर पर ऐसे लोग जो अपने नाम से सीधे निवेश नहीं करना चाहते, वो इस तरह का रास्ता अपनाते हैं। जैसे एफ़आईआई (फ़ॉरेन इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर) भारत में अपना पंजीकरण करा सकते हैं और निवेश कर सकते हैं। लेकिन कई निवेशक ऐसे हो सकते हैं जो भारतीय बाज़ार में निवेश करके मुनाफ़ा तो कमाना चाहते हैं लेकिन अपनी पहचान ज़ाहिर नहीं करना चाहते। तो ऐसे निवेशक किसी देश में एक कम्पनी बनाकर ऐसे फ़ॉरेन इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर को पैसा दे सकते हैं जो भारत में पंजीकृत है। जहाँ तक हैज फ़ंड का सवाल है तो ये ऐसे संगठन हैं जिनका गठन कुछ लोग मिलकर करते हैं। ये संगठन उधार लेकर देश-विदेश के शेयर बाज़ारों में कम समय के लिए पैसा लगाते हैं और बहुत तेज़ी से पैसा उगाहते हैं। हैज फ़ंड सरीखे संगठन यह काम पार्टिसिपेटरी नोट्स के ज़रिये करते रहे हैं।
अर्थव्यवस्था में विदेशी पूँजी निवेश को आमंत्रित करने का मतलब है ऐसी आवारा पूँजी को घरेलु बाज़ार में प्रवेश का प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष आमंत्रण देना। एक तरफ तो ऐसी पूँजी लम्बी सांसे ले रही अर्थव्यवस्था को जीवन रक्त प्रदान करती है, जो कि एक उभरते अर्थव्यव्स्था को व्यवस्थित होने के लिए अतिरिक्त तरलता प्रदान करती है, जबकी दूसरी तरफ जब इस अर्थव्यवस्था को आड़े वक्त में तरलता की अनीवार्य आवश्यकता आती है यह पूँजी देश से पलायन प्रारम्भ कर समस्या को और जटिल बना देती है। ऐसे भी उदाहरण हैं जब कुछ अर्थव्यवस्थाएं इस आवारा पूँजी के पलायन के कुजंजाल में फंस कर अस्थिर हो गईं हैं।
आवारा पूँजी के अनेक रूप हैं, लेकिन इन सब में सबसे बदनाम हैं हेज़ फंड़ तथा पार्टिसिपेटरी नोट (पी-नोट) के माध्यम से आने वाला निवेश। पार्टिसिपेटरी नोट्स वो दस्तावेज़ होते हैं जिनके माध्यम से कुछ व्यक्तियों या संस्थाओं को भारतीय शेयर बाज़ार में सहभागिता करने का मौक़ा मिल जाता है। आमतौर पर ऐसे लोग जो अपने नाम से सीधे निवेश नहीं करना चाहते, वो इस तरह का रास्ता अपनाते हैं। जैसे एफ़आईआई (फ़ॉरेन इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर) भारत में अपना पंजीकरण करा सकते हैं और निवेश कर सकते हैं। लेकिन कई निवेशक ऐसे हो सकते हैं जो भारतीय बाज़ार में निवेश करके मुनाफ़ा तो कमाना चाहते हैं लेकिन अपनी पहचान ज़ाहिर नहीं करना चाहते। तो ऐसे निवेशक किसी देश में एक कम्पनी बनाकर ऐसे फ़ॉरेन इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर को पैसा दे सकते हैं जो भारत में पंजीकृत है। जहाँ तक हैज फ़ंड का सवाल है तो ये ऐसे संगठन हैं जिनका गठन कुछ लोग मिलकर करते हैं। ये संगठन उधार लेकर देश-विदेश के शेयर बाज़ारों में कम समय के लिए पैसा लगाते हैं और बहुत तेज़ी से पैसा उगाहते हैं। हैज फ़ंड सरीखे संगठन यह काम पार्टिसिपेटरी नोट्स के ज़रिये करते रहे हैं।
....शेष अगले किस्त में
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