हम सबको अपने देश का गणतंत्र दिवस मुबारक हो। यह एक ऐसी भावना है जिसे बोलने से ज़्यादा महसूस किया जाना चाहिए। लेकिन अफसोस ! आज के तेज़ चाल जमाने में हमें सोचने कि फुरसत कम है, हम बस बोल के काम चला लेते हैं। अगर समस्या केवल फुरसत कि कमी की होती तो भी गनीमत थी, असली समस्या तो यह है कि हम अब इन मुद्दों में छिपी भावनाओं को महसूस करने से कतराने लगे हैं।
हम सब हर वर्ष 15 अगस्त और 26 जनवरी को कितने खुश होते हैं, दोस्तों मित्रों से मिलते हैं, एक समारोह सा माहौल होता है, राष्ट्र गान, देश भक्ती के गानें, मुँह में देश के लिए कुछ भी करनें के वायदे, हाथों में कागज के तिरंगे झंडे और जाने क्या-क्या। जाने क्यों, मुझे कभी-कभी यह सब सतही सा लगता है, इसमें गहराई और भावनाओं कि कमी लगती है। मैं ऐसा कहने के लिए आप सब से और खुद से भी माफी चाहता हूँ, लेकिन जरा सोचिए, 16 अगस्त और 27 जनवरी को और इसके बाद क्या होता है। हम फिर लग जाते हैं उसी खोखली कवायद में जिसमें 14 अगस्त और 25 जनवरी तक लगे होते हैं। जरा सोचिए अगर इस दिन छुट्टी न होती तो क्या हम वह सब करते जो हम किया करते हैं? अगर हाँ, तो जरा सोचिए हमें कौन रोकता है साल के 365 दिन इसी भावनाओं के साथ रहने से? क्यों हम भ्रष्टाचार में लिप्त रहते हैं? क्यों हम एक दूसरे को नीचा दिखाने कि कवायद में लगे रहते हैं? जरा सोचिए, जो कागज के तिरंगे झंडे 15 अगस्त और 26 जनवरी को हम पूरी शान से अपनें सीने से लगाए होते हैं वही 16 अगस्त और 27 जनवरी को मात्र कागज़ के रंगीन टुकड़े क्यों हो जाते हैं? क्यों हम मिठाई से मुँह तो मीठा कर लेते हैं लेकिन दिल के कड़वाहट दूर नहीं कर पाते? जिनसे एक दिन हम गले मिलते हैं, अगले दिन उसी के पीठ में छुरा क्यों घोंपते हैं?
क्या हम अपनी इन आदतों से कभी आज़ाद हो पाएंगे? क्या हम स्वतंत्र हो पाएंगें? क्या हम अपनें देश को कभी सही मायनों में गणतंत्र बना पाएंगें? मुझे पुरी उम्मीद है, “हाँ” ! हाँ हम ऐसा ज़रूर कर पाएंगें !!!
आइए, आज से हम कोशिश करतें हैं कि हमारे जीवन में 15 अगस्त और 26 जनवरी मात्र दो दिन नहीं होंगें, बल्की साल के सभी 365 दिन हमारे लिए 15 अगस्त और 26 जनवरी जैसे ही होंगें।