कुछ मेरे बारे में

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आईज़ोल, मिज़ोरम, भारत
अब अपने बारे में मैं क्या बताऊँ, मैं कोई भीड़ से अलग शख्सियत तो हूँ नहीं। मेरी पहचान उतनी ही है जितनी आप की होगी, या शायद उससे भी कम। और आज के जमाने में किसको फुरसत है भीड़ में खड़े आदमी को जानने की। तो भईया, अगर आप सच में मुझे जानना चाहते हैं तो बस आईने में खुद के अक्स में छिपे इंसान को पहचानने कि कोशिश कीजिए, शायद वो मेरे जैसा ही हो!!!

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शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2009

महात्मा गाँधी कि भारत यात्रा

(मैं नही जानता कि मैं इसे हास्य कहूँ या व्यंग, इसे गद्य कहूँ या पद्य, व्यथा कहूँ या अभिलाषा, सम्वेदना कहूँ या अभिव्यक्ति, चिंता कहूँ या चिंतन, लेकिन ये विचार मुझे आज से ठीक 12 वर्ष पहले आया था, जिसे मैंने कलमबद्ध तो उसी समय कर दिया था, एक मंच से पढा भी था, लेकिन उसके बाद से यह मेरे जेहन में कहीं दबा हुआ था। आज महात्मा गाँधी जी का जन्मदिन है, और मुझे लगता है आज सही वक्त है इसे पुन: अभिव्यक्त करने का। इस लेख में पात्रों को व्यक्ति विशेष के रूप में न देखा जाना चाहिए बल्की भावना को समझने कि चेष्टा होनी चाहिए और इसी सन्दर्भ में मैं आप सबकी राय भी जानना चाहुँगा)


जैसे ही महात्मा गाँधी जी अखबार उठाए

मायावती द्वारा खुद के नाम पर प्रहार पाए

सो वह तुरंत पहुंचे ‘बी.एम.डब्लू’ के घर

वहां उनका नौकर बोला बैठीए, बहन जी हैं अन्दर


‘बहन माया वती’ आते ही पकड़ लीं गाँधी जी के पैर

और बोलीं आशिर्वाद दीजीए

गाँधी जी बोले पैर छोड़िए पहले मुझसे बात कीजिए,

पहले मेरी इस शंका का निवारण कीजिए,

खबरों से तो लगता है आप हैं मुझसे नाराज़ सख्त,

लेकिन अभी तो लग रहा है आप हैं मेरी परम भक्त


सुन कर यह बात मायावती मुस्काईं, थोड़ा सकुचाईं

और दबी आवाज़ में गाँधी जी को सच्चाई बतलाईं

बोलीं, मैनें इसलिए प्रकट किया आपका आभार

क्योंकि आप ही हैं मेरे राजनीतिक जीवन का आधार।

चँद दिनों पहले मुझे जानता नहीं था कोई,

और आज मेरे पीछे है विधायकों की फौज,

इतने कम समय में प्रसिद्धी पाना, मेरी ही है मौलिक खोज।


आमतौर पर सभी आप को पूजते हैं,

सो मैनें सबसे अलग हट कर आपको दी गाली,

इस वजह से मुझे खबरों में मिली सुर्खी

और आज सोने-चाँदी से भरी है मेरी थाली।

इसीलिए मैंने कहा, आप ही हैं मेरे राजनीतिक जीवन का आधार,

अब आप जो सज़ा दें, वो है मेरे लिए सिरोधार

अपने राजनीतिक आराध्य को गाली देना मुझे भी खलता है,

पर क्या करें आज-कल राजनीति में सब चलता है


मायावती से मिल कर गाँधी जी पहुँचे उस पार्टी के पास,

जिस पार्टी का उन्होने मरते दम तक दिया था साथ।

पार्टी के दफ्तर कि दीवार पर टंगी थी महात्मा गाँधी की तस्वीर

जिसपे पड़ी थी एक ताज़े फूलों की माला,

और उस तस्वीर के पीछे छिपा था धन काला।

उन्हे न पहचानते हुए एक बड़े नेता ने पुछा कौन?

महात्मा गाँधी खड़े रहे मौन।


वह नेता पुन: बोला किससे मिलना है, बोलो क्या काम है?

गाँधी जी बोले, शायद इसीलिए है कांग्रेस इतनी बदनाम

बोले, तुम मेरे नाम से करते हो अपनी राजनीति का व्यापार

और मुझे ही पहचानने से करते हो इंकार?

मुझे गाली देने वालों से राजनीतिक तालमेल करते हो

और सत्ता में आने पर घोटाले और गोलमाल करते हो,

शर्म नहीं आती, कांग्रेसी हो कर भी पैसे पर मरते हो?


इतना सुन कर बोला वह कांग्रेसी नेता

आप को अन्दर आते तो किसी ने नहीं न देखा?

अब आप चुपचाप पिछले रास्ते से हो जाइए नौ-दो-ग्यारह

और कृपया इधर बीच यहाँ न आइयेगा दोबारा।

कहीं-कहीं हमारा ब.स.पा. से समझौता है

आप को यहाँ देख कर हमारा सम्बन्ध खराब हो सकता है।

ऐसा नहीं है कि हम आप की इज्जत नहीं करते हैं

लेकिन क्या करें मायावती से डरते हैं।

न चाहते हुए भी हमारा ब.स.पा. से समझौता है,

क्योंकि ऐसा बुरा दौर बड़ी मुश्किल से टलता है,

और आज-कल राजनीति में सब चलता है


कांग्रेस जैसी बड़ी पार्टी का देख कर यह हाल

महात्मा गाँधी हो गए बदहाल,

अब काफी थकी हुई सी लग र्ही थी उनकी चाल।

तभी दिखा उन्हे भा.ज.पा. का दफ्तर,

उसकी भव्यता देख कर उन्हे आने लगा चक्कर,

एक धर्म-निर्पेक्ष देश में धर्म के ठेकेदारों की ये शान?

वाह-रे इस देश कि जनता, वाह-रे मेरे देश महान।

इनका पहला नारा है स्वदेशी,

और पैर में पहनें जूते का फीता भी है विदेशी।

इनका जो भी है, सब है दिखावा,

चाहे हो इनका चरित्र, चाहे पहनावा।

ऐसा दल देख कर ये दिल जलता है,

पर क्या करें, आज राजनीति में यही चलता है।


वहाँ से आगे बढे तो मिला एम. एस. यादव का घर

यानी, समाजवादी पार्टी का मुख्य सदर,

बाहर समाज भूख से तड़प रहा था,

और अन्दर समाजवादी नेता पेट-पूजा कर रहा था।

यह दृश्य देख कर महात्मा गाँधी रह गये दंग,

क्या ऐसा ही होता है समाजवादी नेता का रंग-ढंग !

उन्होने पुछा, क्या आप विश्वास रखते हैं समाजवाद में?

भोजन से बिना हटाए ध्यान, मुलायम ने दिया जवाब,

हाँ, हम विश्वास करते हैं इस बात में, कि पहले हम, समाज बाद में

आज के दौर का समाजवादी नेता ऐसे ही पलता है,

और आज-कल राजनीति में सब चलता है


महात्मा गाँधी एक जगह बैठ गए हो के उदास,

तभी ‘भारतेन्दु’ पहुँच गए उनके पास।

मैंने उनसे पूछ, आप लग रहें हैं परेशान

सुनते ही गाँधी जी हो गए हैरान, गुस्से में बोले,

यदि आज राजनीति में यही चलता है,

तो क्यों नहीं तू अपना नेता बदलता है?

मैनें उन्हे समझाया, चिंता छोड़ीये, न हों परेशान

आज का यूवा वर्ग है आशावान,

कि बहुत जल्द ही ढलने वाली है भ्रष्टाचार की शाम

और जल्द ही एक नया सवेरा होगा,

जिसमें सिर्फ अमन और इमान का बसेरा होगा।

ये ठीक है कि आज राजनीति में यही चलता है,

लेकिन इतिहास गवाह है, वक्त हमेशा बदलता है॥

3 टिप्‍पणियां:

  1. आपने अपनी रचना में एक नहीं अनेकों महत्वपूर व् प्रासंगिक बातों को उठाया है. सच में हमें सोचने पर मजबूर करता है.
    जारी रहें.

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    हिंदी ब्लोग्स में पहली बार Friends With Benefits - रिश्तों की एक नई तान (FWB) [बहस] [उल्टा तीर]

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  2. बहुत ही सुंदर लिखा है डॉक्टर साब !
    वर्तमान कि राजनीति देख कर गांधी जी ऐसे ही व्याकुल होते.
    बहुत ही सजीव चित्रण किया है गांधी जी की मनोदशा का.
    साधुवाद.

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